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विचारधारा

अब मैं साइट पर समय-समय पर वैचारिक बातें लिखने और प्रकाशित करने की शुरुआत करने जा रहा हूँ। यह स्पष्ट बातें हवा हवाई बातें करने वालों के लिए आधार के रूप में इस्तेमाल की जा सकती हैं, ऐसा हम कह सकते हैं। यदि आवश्यक हुआ तो इनमें कटौती भी की जा सकती है। मेरी कहानी में बहुत सारे शब्द हैं, पर जैसा भी है ठीक है। :-))

आधुनिक संसार बहुत बुरा है। यह अमानवीय, अनुचित और अन्यायपूर्ण है। यह पैसे की दुनिया है। यह आम लोगों के लिए नहीं है। यह साहूकारों,पूंजीपतियों और धन का उत्पादन करने वालों के लिए है। और आम लोग बस सेवक के रूप में उनके काम करते हैं। वे उनके महलों में झाडू लगते हैं।

समाज कल्याण के पीछे क्या निहित है? परिश्रम। लेकिन क्यों एक साहूकार,किसान व कार्यकर्ता की तुलना में एक हज़ार गुना बेहतर तरीके से रहता है? क्यों धन्नासेठ बेहतर जिंदगी जीते है? वो सभी पैसे वाले। क्या वे कठिन परिश्रम करते हैं ? यह बकवास है। यह कहना हास्यास्पद है की वे भी कोई भी उत्पादन नहीं करते हैं। कोई भी महत्त्वपूर्ण कार्य नहीं करते हैं। लेकिन क्यों?

आप नहीं जानते? इसके अलावा, शायद, आप यह सब पढ़ने के बाद और सच्चाई जानने के बाद आश्चर्यचकित हो जायेंगे। "ठीक है ... सेठ या साहूकार और मेरे या मेरे पड़ोसी जॉनी जैसे साधारण व कठिन परिश्रम करने वाले में कोई तुलना नहीं हो सकती है।  हम्म ... यह तुलना नहीं की जा सकती है। साहूकार पैसों का एक बैंक होता है....संबंधों और संपर्कों का। लेकिन हम और जॉनी क्या हैं ? कुछ भी नहीं। स्वाभाविक रूप से, साहूकार हमसे अच्छी जिंदगी बिताते हैं। 

लेकिन यहाँ "स्वाभाविक" कुछ भी नहीं है। मुख्य बात यह है की इस हालत या दशा के लिए हर किसी का इस्तेमाल किया गया है। और यह सब उन्ही लोगों के कारण है। एक मामूली सी बात यही है की, एक साहूकार को अच्छी ज़िन्दगी बिताना है तो यह अन्य तरह से नहीं हो सकता है। लेकिन यह एक दूसरे तरीके से हो सकता है। 

ऐसा क्यों ? साहूकार हमसे कम काम करते हैं पर हमसे बेहतर तरीके से क्यों रहते हैं? क्या वे एक मजदूर या खान में काम करने वाले से बेहतर हैं ? हालांकि, आपको अपने आप ही सवाल का जवाब मिल गया है। क्योंकि "साहूकार पैसों का एक बैंक होता है"। एकदम सही। पैसा ही इस पूरे मुद्दे की आधारशिला है। और इसलिए हमें उनके बारे में और पैसों के विषय में विस्तार से बात करनी चाहिए। 

हाँ तो, पैसा क्या है? क्या आपने कभी इसके बारे में सोचा है? गणना उपकरण? श्रम का पैमाना? जैसा की हमे बचपन से बताया जाता है,अधिकाँशतः पालने से ही कि "हमें काम, काम और काम करना है....पैसे आसमान से नीचे नहीं गिरेंगे। वे ईमानदारी और मेहनत से ही अर्जित किया जाना चाहिए। ...."आदि, आदि, आदि...." यह शब्द परिचित लगता है ना? परिचित बारंबार। वैसे, यह कहना, अब्रमोविच के लिए (रूसी कुलीन, इंग्लिश फुटबॉल क्लब "चेल्सी" के करोड़पति मालिक),जिन्होंने ईमानदारी और कड़ी मेहनत से करोड़ों रूपए कमाए। सिर्फ मनोरंजन के लिए, आप यह सकते हैं कि ईमानदारी से पैसे कैसे कमाने हैं। आप हँसते-२ मर जायेंगे।  :-))

जी हाँ, हमें काम करना है। लेकिन अंत में हमें क्या उम्मीद करनी चाहिए? एक छोटे सी पेंशन और कुपोषण का शिकार बुढ़ापा ? निर्धनता.... आप सबने केवल कुछ धनिकतंत्र के लिए अपना जीवन बिता दिया है,आपसे सारी शक्ति,ऊर्जा व स्वास्थय छीन ली गयी है, आपको नींबू की तरह निचोड़ लिया गया है और उसके बाद किसी परिपूरित सामग्री की तरह कूड़ेदान में फेंक दिया गया है। क्या यह आवश्यक है? लेकिन यही आधुनिक समाज की वास्तविकता और भयावह हकीकत है। यह वही है जिसकी हम सभी को लगभग  निश्चित रूप से अंत में उम्मीद करनी चाहिए। आज की दुनिया में विशाल बहुमत में लोगों के लिए सब कुछ इस तरह से ही समाप्त होता है। जैसे की यह बिलकुल उनकी मां और पिता, दादी और दादा के लिए हो गया.... और जैसे यह वर्तमान हालातों में उनके बच्चों,पोतों और पड़पोतों के लिए भी होगा .... तब उनके बाद उनके भी बच्चों और पोतों के लिए .... और ऐसा ही चलता रहेगा,जिस तरह से दुनिया। पर क्यों ? यह सब गलत है ,अनुचित है। यह अस्तित्व में नहीं होना चाहिए। क्यों केवल कुछ लोगों के लिए सब कुछ है, लेकिन दूसरों को कुछ भी नहीं है? क्यों कुछ लोगों को सुनहरी चप्पलों में टहलते है, लेकिन दूसरों को साधारण भी मिलना मुश्किल होता है? उन्हें नहीं पता है की अपने बच्चों का पेट कैसे भरना है ,यद्यपि वे सभी ईमानदारी से काम करते हैं ? ऐसा क्यों होता है ? आखिर हम भी तो लोग हैं, भाई हैं। हम एक "सामान" हैं। क्या नहीं हैं ? तो फिर ऐसा भेदभाव क्यों? 

क्योंकि हमारे चारों ओर झूठ है। एक विशाल, सतत, राक्षसी झूठ। जीवन से तृप्त और अच्छी तरह पले-बढे मालिकों द्वारा टीवी पर दैनिक प्रसारित किया जा रहा कुछ भी विश्वास के लायक नहीं है।

लोग समान नहीं है और पैसा भी परिश्रम का पैमाना नहीं है। यह सब का सब एक ढीठ और बेशर्म झूठ है। झूठ, झूठ, झूठ और केवल झूठ है। यह नूडल्स की तरह है जो आपके कानों पर लटका दिया जाता है। वह लोग ऐसा क्यों करते हैं ? बस आसानी से लोगों का प्रबंधन करने के लिए। 

 अब आप धनिकतंत्र हो(या फिर एक साधारण बेकार सहायक)। क्या आप दूसरों के समान हैं ? किस बात में समान ? आप एक अलग तरीके से रहते हैं,अलग तरीके से खाते हैं और अलग तरीके से आराम करते हैं। एक दिन में वह आपके एक साल के खर्च की तुलना में अधिक खर्च करता है। उनकी पत्नियां महलों से बाहर नहीं जाती हैं। और आपकी ?.... उनका सबसे अच्छे स्विस क्लीनिक में इलाज किया जाता है। और क्या आप लोगों का किया जाता है ?उनके और अपने बच्चों में क्या कभी आपने तुलना की है ? खैर,आपकी समानता कहाँ है?

शायद, आप अधिकारों में बराबर हैं, क्या आप नहीं हैं ? अरे, मैं तो अधिकारों के बारे में भूल ही गया,जैसा की यह हमारे संविधान में लिखा है ,क्या मैं सही नहीं हूँ ? (वैसे, बहुत से बातें आड़ में भी लिख दी गयी हैं। अच्छी और बुद्धिमत्तापूर्ण बातें। आप खाली समय में पढ़ सकते हैं। आप इन बातों से प्रभावित हो जायेंगे। :-)) और कौन से अधिकार हमारे और धनिक तंत्र या साहूकारों के लिए "बराबर" हैं ? मैं यह जानने के लिए बहुत उत्सुक हूँ। 

काम करने का अधिकार ? खैर, हमारे देश में इस तरह का एक अधिकार है। कोई भी तर्क नहीं देता है। लाभ कमाने के लिए कठिन परिश्रम करो ,लेकिन किसका लाभ...... आप कारखानों में कठिन परिश्रम करते हो ,और वह ... 

चुनाव करने का और चुने जाने का अधिकार ? हम्म ... खैर, आप चुनाव कर सकते हैं ,आपका स्वागत है। आप वोट करिये। (इससे कोई मतलब नहीं है की लोग कैसे वोट करते हैं ,बल्कि सबसे महत्त्वपूर्ण यह है की वोटों की गिनती कैसे होती है :-)).... और "चुने जाने" के बारे में क्या ?.... क्या आप कहीं और से निर्वाचित होने के लिए जा रहे हैं? और क्या इसके लिए आपके पास पैसा है ? चुनाव अभियान के लिए आरक्षित स्वर्ण निधि ? नहीं ना? तो, सुचारू रूप से साँस लो और आराम करो। अपने कारखाने में आओ और कठिन काम जारी रखो, और कुछ भी ऐसा मत करो जिससे आपके लिए समस्या खड़ी हो जाये। जीवन का यह पर्व आपके लिए नहीं है। यह उन लोगों के लिए है जो आपकी तुलना में अधिक हैं। :-))

और क्या है? .. हालांकि, यह निष्कर्ष नहीं है। आगे जारी रखने का कोई मतलब नहीं है। मैं उम्मीद करता हूँ कि सब कुछ पहले से ही स्पष्ट है, किस तरह के "समान अधिकार", जो आप दोनों के पास हैं, फिर भी आपको पता है कि कौन अधिक है। 

यह सब सार्वभौमिक समानता और भाईचारे के बारे में है। यह समझ से बाहर है, मुझे लगता है। अब हम पैसे पर चलते हैं। हम "श्रम के पैमाने" के बारे में बात नहीं करेंगे। ये सब बेवकूफों के लिए परियों की कहानियों की तरह हैं। पैसा कोई "श्रम का पैमाना" नहीं है। नहीं तो आप एक स्वामी की तरह जीवन यापन करते या हो सकता है की आप बहुत ज्यादा काम नहीं करते।  मैं नहीं जानता कि क्या हो रहा है। :-)) लेकिन पैसा क्या है ?हथकड़ी। बेड़ी। जंजीर। टिकाऊ और अटूट जंजीर, जो किसी भी इस्पात की तुलना में अधिक मज़बूती से गुलामों को पकड़े हुए है। २१ वीं सदी में दास कौन हैं? आप क्या मुझसे पूछते हो की गुलाम कौन है? तो मेरा जवाब है, तुम और मैं। सभी चारों ओर। तुम्हें पता है, मुझे, उसे, उसको ... हम सबको। हम सब दास हैं। पैसे के गुलाम। अधिक संक्षेप में कहें तो, जो लोग पैसे छापते हैं, हम उनके गुलाम हैं। हम अपने स्वामी के दास हैं।

सदियाँ गुजर जाने के बावजूद पृथ्वी पर कुछ भी बदलाव नहीं हुआ है। ओह-हो-हो! ..हम गुलाम व्यवस्था में अब तक रहते हैं। केवल बाहर से सब कुछ और अधिक सभ्य,नाजुक और परिष्कृत हो गया है। हमारे बंधन अब भारी, जंग खाए हुए और इस्पात की तरह नहीं रह गए हैं, वे अब अदृश्य और हल्का हो गए हैं। ऐसा प्रतीत होता है की वे अस्तित्व में नहीं हैं। आप जहाँ भी चाहें जा सकते हैं। आप जो भी चाहें कर सकते हैं। आप स्वतंत्र हैं। 

लेकिन वास्तव में बंधन अभी भी मौजूद हैं। और, अरे नहीं, आप मुक्त नहीं हो। "स्वतंत्रता" एक भ्रम है। पैसा। यही तो मुख्य बात है। खैर, पैसे के बिना आप कहाँ जा सकते हो ? आज यह पाषाण युग नहीं है, आप गुफा में नहीं रह सकते हो, आप जानवर की खाल में अपने आप को तैयार नहीं कर सकते, और न ही आप विशालकाय हाथी का शिकार कर सकते हो। (और वे विशालकाय शिकार रह ही कहाँ गए हैं?) आपको एक घर, कपड़े, भोजन की जरूरत है। और यह सब पैसा, पैसा, पैसा ... और एक बार फिर से पैसे के बारे में है। आख़िरकार, सब कुछ चारों ओर सिर्फ पैसे के लिए है। आप एक कदम भी उसके बगैर नहीं चल सकते हैं। लेकिन पैसा कहाँ पाएं ? यह सही है, आपको उन्हें अर्जित करना होगा। क्या आपने सुना ? जंजीर की दस्तक, सचेतक की सीटी और अध्यक्ष की चिल्लाहट ?

क्या आपने कभी सोचा है कि अपने आप को बेचना अनैतिक है ? अपनी खुद की ताकत, दिमाग, समय को बेचना वेश्यावृत्ति के समान है … इसमें अपने खुद के शरीर की बिक्री से कहाँ कोई फर्क है? हाँ, लेकिन आप देखेंगे की लोगों को काम करना है। यदि सब लोग अपनी नौकरी करना बंद कर देंगे, तो फिर क्या होगा? तो हमे फिर से गुफाओं में रहने जाना होगा और जानवरों की खाल पहननी पड़ेगी। क्या हमें ऐसा नहीं करना पड़ेगा ?

यह सही है। सब कुछ सही है। यह बहुत ही उचित, तार्किक और आसानी से  समझने योग्य है जैसे कि ए बी सी डी। (यहां तक कि मैं समझ गया।),:-)) यही कारण है जिसकी मैं बात कर रहा हूँ। सदियाँ गुजर जाने के बावजूद पृथ्वी पर कुछ भी बदलाव नहीं हुआ है। और इन सब "समझाने" वाले तर्कों को गुलाम (दास) समाज में निश्चित रूप से सुना जा सकता है। दासता की जंजीरों में जकड़े हुए लोगों को यह समझने की आवश्यकता थी कि, उनके लिए काम करने की कोई आवश्यकता नहीं है, जो उन्हें हठी, बेकार गुलाम समझते हैं। (मूर्ख दास)...:-)).और बाद में, काफी हाल ही में, ऐतिहासिक समय में जमींदारों ने उन  कृषक दासों को बताया कि "आखिरकार, यदि आप काम करना,जोतना, बोना और काटना बंद कर दोगे तब क्या होगा ? हमारे समाज का पतन हो जायेगा। और हम भूख से मर जायेंगे। हमे जंगल की और भागना पड़ेगा।" 

हाँ, समाज को उपयोगी बनाने के लिए कुछ काम करने की आवश्यकता है। अन्यथा समाज का पतन हो जायेगा और अंत भी हो जायेगा। लेकिन सबसे पहले, हमे स्वेच्छा से काम करना है,पर न तो सूप के एक कटोरे के लिए और न ही केवल जीवित रहने के लिए। हमें वही करना है जो हम करना चाहते हैं। 

और दूसरी बात, अगर कुछ और, तो एक बार यह काम करना जरूरी है - यह हर किसी के लिए आवश्यक है। सभी लोग समान हैं। क्या नहीं हैं ? इसलिए प्रत्येक को काम करना चाहिए। वह स्थिति, जब कुछ लोग पैसा कमाते हैं (एक खदान में या कारखाने में खून-पसीने बहाकर), जबकि अन्य लोग सिर्फ उन्हें आदेश देते हैं। (आराम से बैठकर महँगी व्हिस्की या ब्रांडी पीते हुए।), यह अस्वाभाविक है। ऐसी स्थिति सैद्धांतिक रूप में स्वीकार्य नहीं है। और वास्तव में ऐसे मामलों में कोई "स्पष्टीकरण" और बहाने नहीं हैं। 

पैसा सिर्फ एक कागज है, कैंडी का आवरण (टॉफी की झिल्ली) है। इसका किसी भी वास्तविक चीज़ से कोई ताल्लुक नहीं है, और इसके अनुसार, पैसा केवल लिखित पृष्ठ है। (क्षमा करें, मुद्रित किया जाता है।), और तब यह कैंडी(टॉफी)  आवरण "श्रम भत्ते" के रूप में गुलामों को दिए जाते हैं। जब दास को एक अतिरिक्त आवरण दिया जाता है, इसका मतलब यह है कि उनके वेतन में वृद्धि हुई है। :-)) और वे खुश हो जाते हैं। आप हैरान हो गए? क्या यही जीवन है ? पर यही हमारा कड़वा सत्य है। 

आर्थिक दुनिया कैसे संयोजित की जाती है? यह एक पिरामिड है। फेड, अमेरिकी फेडरल रिजर्व सिस्टम शीर्ष पर है। फेड डॉलर छापता है। कितना? यह जितना चाहता है उतना। वास्तव में, फेड अपने स्वयं के कुछ आंतरिक नियमों और विनियमों का पालन करता है। यह, उदाहरण के लिए, मुद्रा के पूरे अवमूल्यन(गिरावट), आदि, आदि को रोकने के लिए भी ज्यादा डॉलर मुद्रित नहीं करने की कोशिश करता है। लेकिन सैद्धांतिक रूप से यह जितने डॉलर चाहे उतने मुद्रित(छाप) कर सकता है। कम से कम, उनके लिए कोई भी बाहरी सीमाएं नहीं हैं। निश्चित रूप से, अमेरिकी फेड केवल अपने स्वार्थों के लिए स्वतः निर्देशित है।

इस वैश्विक पिरामिड के निचले स्तर पर विभिन्न देशों के केंद्रीय बैंक हैं। अन्य सभी स्थानीय, राष्ट्रीय बैंकें भी निचले स्तर पर स्थित हैं। बेशक, यह सब थोड़ा सरल है,लेकिन सामान्य तौर पर हर चीज वास्तविकता से मेल खाती है और समग्र तस्वीर को दर्शाती है। हमें बैंकों की जरूरत क्यों है? आदर्श रूप में कहूँ तो, बैंक सामाजिक जीवन में रक्त वाहिकाओं की भूमिका निभाते हैं। इन वाहिकाओं के माध्यम से पैसा(खून),ह्रदय(केंद्रीय बैंक) से होते हुए सभी अंगों में प्रवेश करता है। पैसा(खून) इन अंगों की सफाई करता है। ये उनमे जीवन का संचार करता है।....(ये मैं नहीं कह रहा हूँ, ये जानकारी आप अर्थशास्त्र की किसी भी किताब में पा सकते हैं।:-))

किस सम्बन्ध में यहाँ डॉलर का उल्लेख किया गया है? और हम लोगों का फेड वालों से,पापियों से, क्या सम्बन्ध है ? बहरहाल, डॉलर एक वैश्विक मुद्रा है। (क्या ये आप नहीं जानते हैं? :-)) हम कह सकते हैं कि, रशियन केंद्रीय बैंक ("एक छोटा स्वाभिमानी ग्रामीण विकास बैंकर संस्थान") अमेरिकी फेडरेशन के आदेश के बिना रूबल(रूसी मुद्रा) नहीं मुद्रित कर सकता है। निश्चित रूप से नहीं। जितनी जल्दी रूस, अमेरिका को अरबों डॉलर के तेल व गैस की आपूर्ति करता है ((यह महान अमेरिकी राष्ट्रपतियों के चित्रों के साथ कागज के रंगीन टुकड़े का एक माल-डिब्बा है।), तो रूसी केंद्रीय बैंक को एक साफ अंतःकरण के साथ अरबों डॉलर की राशि के बराबर रूबल्स मुद्रित करने के लिए अनुमति दी जाएगी। यही एक तरीका है। अन्यथा, रूस को अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष से निष्कासित कर दिया जाएगा, और सामान्य में, रूबल एक स्वतंत्र रूप से परिवर्तनीय मुद्रा नहीं होगी। लेकिन रहने दो। यह एक और बातचीत के लिए 

ठीक है, ठीक है। "रक्त वाहिकाएं! .. सफाई! .." - यह सारी बातें, वास्तव में आश्चर्यजनक हैं, पर मुख्य सवाल यह है कि: क्यों साहूकार, कार्यकर्ता की तुलना में बेहतर तरीके से रहता है? हमारे पास अभी भी कोई जवाब नहीं है। तो, वह रक्त वाहिका है क्या? क्या हमें उन्हें उसके लिए नकद बोनस देना होगा या फिर उनके बढ़े हुए आहार के लिए वाउचर ? मैं, उदाहरण के लिए, मकान का निर्माण करता हूँ या रोटी सेंकने काम करता हूँ। यह भी बहुत महत्त्वपूर्ण है। क्या वह मुझसे ज्यादा कठिन काम करते हैं? नहीं। तो फिर क्यों वह हमारी अपेक्षा बेहतर ज़िन्दगी बिताता है?

और इसके अलावा एक छोटा सा सवाल और है। सुबह से रात तक मैं काम करता रहता हूँ, और जनता के लाभ के लिए पागलों की तरह काम करता रहता हूँ, लेकिन फिर भी मैं बंद ऋण का भुगतान नहीं कर सकता। और मेरे दोस्तों की भी वही स्थिति है। क्या यह सब कुछ सही है? यह स्पष्ट रूप से गलत और अनुचित है। यह चिरकालीन विश्वास की गुलामी है। लेकिन हम किसके पैसे के कर्ज़दार हैं या हमें किसको पैसे देने हैं ? हमें बैंकों को पैसे देने हैं, इन खून चूसने वालों को देने हैं, सब और सब कुछ साफ़ करने के लिए। उन सब पर लानत है। हमें इन कम्बख्तों के काम नहीं करने चाहिए,कोई आवश्यकता नहीं है। संक्षेप में कहें तो, वे हमें मूर्ख बनाते हैं। बस इतना ही। जैसे हमेशा बनाते रहे हैं। साहूकार इस बात का फायदा उठाते हैं कि, ये साधारण, मेहनती लोग जिनके पास  इन सभी कपटी योजनाओं का अंदाजा लगाने के लिए समय नहीं है, और इन्हें अपने परिवारों का भी पेट पालना है। बस यही कारण है कि वे इस स्थिति का लाभ लेते हैं और हमारे ऊपर चढ़े रहते हैं। साले कमीने। तो "खून चूसने वालों" के बारे में मुझे मत बताओ।.... हम इन "चरित्रहीनों" को अच्छी तरह जानते हैं। बस मुझे बन्दूक दे दो और मैं........... !!!!

आराम से, आराम से! शांत रहो। और आओ एक साथ पता लगाते हैं। ठीक है? शांति से और धीरे धीरे। लेकिन मैं फिर से कहता हूँ की अपने दिमाग पर जोर दो। उन बातों को कुछ मिनटों में जानना बिलकुल आसान नहीं है जो की सदियों के दौरान मानव जाति के सर्वश्रेष्ठ विद्धान लोगों द्वारा पेचीदा कर दी गयी हैं। लेकिन हम कोशिश करेंगे। कम से कम हम कुछ तो सामने लाएंगे, आधुनिक बैंकों के जीवन से कुछ और। हम जीवंत उदाहरण के माध्यम से सब कुछ साबित करेंगे। इतना ही कहूँगा। आप आनंद लोगे :-))

तो निम्नलिखित व काफी सामान्य स्थिति की कल्पना करिये। और मेरे हाथों को देखिये।

मान लीजिये, एक अभय और एक काशी हैं। और मान लीजिये एक श्री सिंह हैं, जो की अभय और काशी के साहूकार (महाजन) हैं, वे दोनों अपना पैसा सिंह साहब के बैंक(कोष) में रखते हैं। (यही कारण है कि हम सम्मान के साथ शीर्षक श्री श्री सिंह, उपयोग कर रहे हैं।:-)) अभय वास्तव में खरीदना चाहता है.... अच्छा, मान लेते हैं काशी की साइकिल खरीदना चाहता है। लेकिन उसके पास पैसा नहीं है। अधिक स्पष्ट कहें तो, उसके पास पैसा तो है, लेकिन पर्याप्त नहीं है - केवल १००० रुपये हैं। जबकि काशी उसकी कीमती साइकिल के लिए १०००० रुपये चाहती है। यही एक समस्या है।

अभय को क्या करना चाहिए ? (और वैसे, साइकिल भी बहुत जरुरी है। :-)) वह दुखी मन से काशी को जमा के रूप में १००० रुपये देता है और शोकपूर्ण ढंग से वह साइकिल किसी को भी न बेचने के लिए कहता है। वह उससे कहता है कि वह बाकी के पैसे भी जल्द ही ले आएगा। वह उसी समय अपने बैंक यानि आदरणीय श्री सिंह के पास बाकी के ९००० रुपये उधार लेने के लिए जाता है। दुर्भाग्य से, मिस्टर सिंह के पास उस समय पैसा नहीं होता है, लेकिन वो अच्छी तरह से उन १००० रुपयों के बारे जानते हैं, जो की अभय ने काशी को दिए थे। और काशी इस पैसे को कहाँ ले जायेगी ? जी, बिलकुल सही, वह ये १००० रुपये अपने प्यारे बैंक यानि वही, श्री सिंह के पास रखेगी। इसलिए श्री सिंह ने अभय को अगले दिन आने के लिए कहा। इस आशा में कि उसे ये १००० रुपये कल मिल जायेंगे। 

और सब कुछ इस तरह से होता है। अगले दिन काशी, बैंक में जमा करने के लिए १००० रुपये लाती है। बैंक, ऋण पर अभय को ये १००० रुपये प्रदान करता है। अभय तुरंत उन्हें काशी को दे देता है। वह फिर से उन रुपयों को बैंक में जमा कर देती  है। बैंक फिर से, ऋण के रूप में अभय को ये १००० रुपये प्रदान करती है, इत्यादि, ऐसा तब तक होता है जब तक मूर्ख अभय साइकिल के लिए पर्याप्त पैसा इकट्ठा नहीं कर लेंगे।

क्या अभी तक आप उलझन में नहीं हैं ? धैर्य रखें। मैंने आपको बताया था ना कि, ये राक्षस हज़ारों वर्षों के दौरान आपको भ्रमित करने का प्रयास करते आ रहे हैं। ये बेकार अर्थशास्त्री और कोषाध्यक्ष। लेकिन किसी भी तरह हम सब कुछ पता लगा लेंगे। :-))

तो हम अंत में हमारे पास क्या बचेगा? अभय को अंत में काशी से साइकिल मिल गयी (वाह। :-)), लेकिन साथ ही साथ अभय बैंक(श्री सिंह) का कर्ज़दार हो गया, और बैंक,  इसके बदले में, काशी के १०००० रुपये की कर्ज़दार हो गई।दूसरे शब्दों में, वो १००० रुपये, जो शुरू में अस्तित्व में थे या कहें जिनसे शुरुआत हुई थी, जादुई तरीके से २०००० रुपये में बदल गए (१९००० रुपये क़र्ज़ और १००० रुपये मूलधन)।

लेकिन ये १००० रुपये भी हजारों रुपए में बदल जाएंगे। यहां तक कि एक लाख या एक अरब रुपये में। यदि अभय एक और अधिक महंगी खरीददारी करेगा। इस मामले में, हमारे १००० रुपये बढ़ते चक्रों, परिपथ में और एक हाथ से दूसरे हाथों में होते हुए बढ़ते ही जायेंगे।:-))

तो, आज दुनिया में क्या होता है? केवल मुसीबत का इशारा। ऐसा प्रतीत होता है कि बैंकें भी रहस्यमयी तरीके से पैसे बनाती हैं और उन्हें कई गुना करती हैं। केवल फेड ही पैसे का उत्पादन नहीं करती हैं बल्कि बैंक भी करते हैं। यदि संक्षेप में कहें तो, हर कोई ऐसा कर सकता है, सिवाय हमारे और आपके। हम जीवन के इस उत्सव के कारोबार में नहीं हैं। वैसे मैं भी कुछ पैसा मुद्रित करना चाहूंगा या निकालना चाहूंगा :-)) और वास्तव में, ये बैंकें बिना किसी नियंत्रण के पैसे को कई गुना करती हैं। और हम तब भी चकित रहते हैं कि,बैंक वाले कैसे बेहतर जीवन व्यतीत करते हैं? हम कितने अनुभवहीन मूर्ख हैं। अब यह स्पष्ट है कि हम क्यों है। वो, जो पैसे का उत्पादन करता है, वास्तव में, बेहतर तरीके से रहता है। :-))

लेकिन यह पर्याप्त नहीं है। इस पल से गरीब अभय बैंक को अपना बकाया ऋण चुकाने में कभी सक्षम नहीं होगा। कोई फर्क नहीं पड़ता कि वह कैसे और कितना कठिन काम करेगा। मूर्ख अभय अभी तक नहीं जानता है कि वह बैंक की दासता में है, ब्याज के बंधन में हमेशा के लिए। क्योंकि वो ९००० रुपये, जो उसने श्री सिंह से लिए थे, उनका वास्तव में कोई अस्तित्व ही नहीं है। कुल मिलाकर, शातिर श्री सिंह ने कुछ भी न करके यह पैसा बनाया। उसने इसे रहस्यमयी तरीके से बनाया। बस एक चुटकी बजाया और १००० रुपये २०००० में बदल गए।

हाँ, लेकिन आप यथोचित आपत्ति कर सकते हैं कि बैंक काशी के १०००० रुपयों की ऋणी है। और यह पता चला है कि, बैंक काशी के ब्याज के बंधन में है और यह अपने कर्ज़े को चुकाने में सक्षम नहीं होगी, जो इसने काशी से उधार लिए हैं। तो, बैंक का मुनाफा कहाँ है? चाल क्या है?

हाँ। आप पूछ रहे हैं ना क़ि चाल क्या है ? वास्तव में चाल यह है कि, बैंक के पास इस तरह के हज़ारों, लाखों लोग हैं, और वे तुरंत एक साथ अपना पैसा लेने कभी नहीं आएंगे। यदि कोई महिला पैसे लेने आती है, तो बैंक दस अन्य जमाकर्ताओं के पैसों से उसका पैसा लौटा देगी, यही तो बात है। इसका मतलब यह है कि बैंक का कर्ज खतरनाक और पीड़ादायक नहीं है। वास्तव में, बैंक का ऋण आभासी है, यह केवल कागज पर या कंप्यूटर प्रोग्राम में मौजूद है। यह वास्तविकता में कभी नहीं चुकाया जाएगा। केवल अचानक के मामले में यह हो सकता है, जब सशंकित जमाकर्ता अचानक अपने पैसे के लिए आ जायेंगे- सभी एक साथ। या हो सकता है कि, क्या आप कोई कारण जानते हो कि बैंकें समय-समय पर क्यों दिवालिया हो जाती हैं ? क्यों का उत्तर यहाँ है। क्योंकि सभी जमाकर्ताओं को लौटाने के लिए पर्याप्त पैसे नहीं हैं। बैंकों की गुम्बदों में ९०% तो  केवल हवा भरी होती है। एक बकाइन कोहरे की तरह। :-))

इस प्रकार, बैंक ठीक है। यह फलते-फूलते हैं और महकते हैं। हमें इसके बारे में चिंता करने की जरूरत नहीं है। लेकिन हमारे निक के सामने अब गंभीर समस्याएं हैं। उसे बैंकों से लिया गया सारा क़र्ज़ चुकाना है। पूरी तरह से। ब्याज और जुर्माने के साथ। आपको को तो यह पता है। उसे पुराने ब्याज को चुकाने के क्रम में एक नया क़र्ज़ लेने के लिए मजबूर किया जाएगा। उसके बाद फिर से नया ऋण ... और फिर से ... और फिर से ... अंतहीन, उसकी मृत्यु तक। और इस तेजी से बढ़ती हुई कर्जरूपी गाँठ से बाहर निकलने का कोई तरीका नहीं है। यह सैद्धांतिक रूप में मौजूद नहीं है। यह बात है। चक्रव्यूह में फंस गया या फंसा दिया गया। अब निक बैंक का सदा ऋणी है। वह एक गुलाम है। अब से वह बैंक के लिए, काम, काम और काम करेगा ... जब तक वह मर नहीं जाता है तब तक। लेकिन फिर भी वह ऋण चुका नहीं पायेगा। उनकी मृत्यु के बाद उनके बच्चे और पोते भी इस बैंक के लिए काम करेंगे। वे सभी बैंक के भविष्य के दास हैं। अधिक संक्षेप में कहें तो, वे इस राक्षसी और नरभक्षी वैश्विक वित्तीय प्रणाली के दास हैं, जिसने इस क्रूर और अमानवीय तंत्र को पैदा किया है, और अंततः जिसको नष्ट किया जाना चाहिए।

वित्तीय क़यामत। यह हमारी वित्तीय जंजीरों को तोड़ सकता है और हम सभी को बचा सकता है। अंततः यह हमें सदियों की गुलामी से मुक्ति दिल सकता है। पुराना सब कुछ क़यामत की स्वच्छ लौ में पूरी तरह से जला दिया जाएगा और सब कुछ नया स्थापित किया जाएगा। फेडरल रिजर्व जला दिया जाएगा और परिवर्तन की हवा फेड की राख को तितर-बितर कर देगी, इस बेकार लालची ऑक्टोपस, मकड़ी, के संशय युक्त वित्तीय जाल में फँसी हुई पूरी दुनिया को छुटकारा मिल जायेगा; बैंकों का मौजूदा प्रारूप जमीन में दफ़न हो जायेगा। वे कुछ भी " सफाई " नहीं कर सकते हैं। इस बकवास पर विश्वास मत करो। वे सभी जीवित चीजों के लिए मौत को ले आते हैं। वे हमारा खून चूसते हैं। बैंकें, समाज के स्वस्थ शरीर पर परजीवी हैं, ये घुन की तरह हैं, जो हमारे खून में लग गयी हैं। वे लालची और लोभी जोंक हैं, जो हमारे ऊपर कसकर चिपकी हुयी हैं। वे वास्तव में उपयोगी क्या करते हैं? क्या वे अपने लुटेरू ब्याज पर ऋण देते हैं?

असल में बैंकें आपको ऋण पर ब्याज क्यों प्रभारित करती हैं? क्या तुमने कभी इसके बारे में सोचा है? सूदखोरी की हमेशा और हर समय सभी राष्ट्रों के बीच निंदा की गयी है और तिरस्कृत किया गया है। और अब यह आदर्श है। एक उद्यमी बैंक से ऋण ले लेता है। उस पर वे ब्याज किसलिए प्रभारित करते हैं? वह समाज के लिए कुछ उपयोगी या लाभदायक करना चाहता है, पूरे समाज के लिए जिसमे साहूकार या बैंकर भी शामिल हैं। ऐसे काम के लिए, उसको सारे अधिकारों से वंचित रखने के बजाय उसे प्रोत्साहित करना चाहिए और विशेषाधिकार दिया जाना चाहिए था।

लेकिन आज के बैंक इस तरह की चीज़ों के लिए नहीं बने हैं। समाज के हित उनके लिए महत्वपूर्ण नहीं हैं। बैंकों को केवल अपने स्वयं के वित्तीय लाभ और फायदे के बारे में ख्याल रहता है। और वे लोगों के बारे में कोई परवाह नहीं करते हैं। आज की बैंकें फेडरल रिजर्व की वफादार नौकर हैं, वे, लालची और शौकीन जोंक (खून चूसने वाले) हैं, एक विशाल दैत्य और दुष्ट राक्षस की सेवा में छोटे पिशाच, आधुनिक सम्राट ड्रैकुला, जिन्होंने वित्तीय बंधन में पूरी दुनिया को डुबो दिया है, और ये हमारा खून चूसते हैं और चूसते ही रहते हैं। और यदि हम इन्हें नहीं रोकेंगे और नष्ट नहीं करेंगे तो ये  हमारे बच्चों और पोतों के खून चूसना जारी रखेंगे। सभी बैंकों पर हथौड़े से ज़बरदस्त प्रहार करो। और चांदी की गोलियां मत भूलना। क़यामत। केवल वित्तीय कयामत। हमारे पास कोई दूसरा विकल्प नहीं है। हम गुलाम नहीं हैं। हम लोग मनुष्य हैं। और हम स्वतंत्रता का चुनाव करेंगे। 

और यह स्वतंत्रता पहले से ही दहलीज पर है। अब, एम एम एम के आगमन के साथ, वित्तीय कयामत अपरिहार्य है। अब से यह सिर्फ समय की बात है। अनाज बोया जा चुका है। और यह अंकुरित होगा। अब यह अंकुरित हो रहा है। फिलहाल, इस क्षण में! और अब यह नष्ट नहीं होगा।

एम एम एम क्या है?

वैश्विक पारस्परिक सहायता समुदाय। दुनिया भर के लोगों का बैंक, वित्तीय सामाजिक नेटवर्क - आप अपनी पसंद से जो भी चाहें इसे कह सकते हैं। बिंदु शीर्षक में नहीं है। बिंदु यह है कि पृथ्वी भर में लाखों लोगों का एक स्वैच्छिक अनौपचारिक नेटवर्क है, वे लोग,जो वित्तीय गुलामी के खिलाफ उठ खड़े हुए हैं। उन्होंने फेड और अन्य बैंकों पर युद्ध की घोषणा करने और इस युद्ध को जीतने का फैसला किया है। इस लक्ष्य को प्राप्त करने के क्रम में उन्होंने साथ मिलकर पैसा इकठ्ठा किया है। और इस बात का कोई फर्क नहीं पड़ता की उनकी स्वयं की बचत ज्यादा बड़ी है या नहीं, लेकिन एम एम एम में बहुत बड़ी संख्या में लोग हैं, लाखों, और साथ में यह एक जबरदस्त ताकत हैं। अपराजेय बल। और यह बल हर गुजरते दिन के साथ बढ़ रहा है।

दरअसल, किस वजह से बैंकों का अस्तित्व है? क्या कुलीन वर्गों और अरबपतियों के कारण? नहीं, वे उन साधारण लोगों के कारण अस्तित्व में हैं जो अपनी छोटी सी बचत को बैंकों में रखते हैं। एम एम एम वास्तव में, लोगों की आँखें खोलकर बैंकों के सबसे बुरे पहलू पर प्रहार करता है। लोग क्यों अपने पैसे को बैंकों में रखते हैं। क्योंकि उनके पास कोई विकल्प नहीं है; बैंकें एकाधिकारी हैं: लोगों को अपने पैसे कहाँ ले जाने चाहिए ? (जैसे केवल जेन से - श्री स्मिथ को) इस बैंक में नहीं, तो किसी दूसरे में। (श्री स्मिथ को नहीं, तो किसी अन्य बैंक वाले को। उसका नाम श्री जॉनसन हो जायेगा। लेकिन हर तरह से, यह एक बकवास ही है।) वे सभी एक जैसे हैं। वे सभी, फेड रुपी दयालु और चिन्ताशील मकड़ी माता के नवजात बच्चे हैं। वे छोटी मकड़ियाँ हैं।

और अंततः हमारे पास एक विकल्प है। एमएमएम। यह आपका है। यहां लोग एक दूसरे की मदद करते हैं। आज आपने मदद किया है - तो कल आप भी मदद पाओगे। एमएमएम का यही सिद्धांत है। क्या आपको एक दूसरी कार खरीदने के लिए या अपनी गाढ़ी मेहनत की कमाई से एक दूसरा घर बनाने के लिए एक मोटे बैंकर (साहूकार) की आवश्यकता है? क्या आप अगले निक या अगले जेन बनना चाहते हैं? क्या आप अगले गुलाम बनना चाहते हो? एमएमएम में शामिल होना बेहतर होगा, और अपने पैसे से उन लोगों की मदद करो जिन्हें  सचमुच जरूरत है। कम आय वाले व्यक्ति, विकलांग व्यक्ति, पेंशनभोगी या  कई बच्चों की मां। अपने पड़ोसी से प्यार करें। उसकी मदद करें।

एमएमएम एक विशाल सुलभ दराज की तरह है, जिसके अंदर लोग अपना पैसा रखते हैं और जितनी जरूरत होती है उतना ले लेते हैं। किसी समय में उन्हें जितनी जरूरत होती है वे उतना ले लेते हैं। वे झपटते या जब्त नहीं कर लेते हैं, सिर्फ लेते हैं। 

वास्तव में, एक इंसान को पैसे की बहुत अधिक जरूरत नहीं होती है। उनके पास पैसे हैं, इसकी जानकारी ही उनके लिए सबसे महत्त्वपूर्ण होती है। केवल एक चीज़, जो कि सभी के लिए वास्तव में बहुत ही महत्त्वपूर्ण है, वह है भविष्य के लिए आत्मविश्वास होना। एमएमएम लोगों को केवल यही आत्मविश्वास दे रही है। यह सहभागिता का अहसास देता है, कि आप अकेले नहीं हो। आपकी मुश्किल समय में हमेशा मदद की जाएगी। आपको अकेले नहीं छोड़ा जाएगा। एमएमएम एक नए समाज की इकाई है, एक उज्जवल और स्वच्छ समाज। यह नई दुनिया की इकाई है, जहाँ पैसे का अस्तित्व नहीं होगा, जहाँ सभी चीज़ें बिलकुल अलग होंगी। ईमानदारी से और साफ़ सुथरा। यहाँ पर कोई दास और कोई स्वामी नहीं होगा। और हर कोई समाज की खुशी और लाभ के लिए काम करेगा। और अंततः अच्छाई की बुराई पर जीत होगी। निश्चित रूप से उस नयी दुनिया में सब कुछ होगा। 

एमएमएम  की प्रणाली में आपका स्वागत है।

हम आपका इंतज़ार कर रहे हैं। हम बहुत कुछ कर सकते हैं। हम दुनिया को बदल सकते हैं। और हम इसे जरूर बदलेंगे। सब कुछ एम एम एम हो जाएगा। वित्तीय कयामत अनिवार्य है।

अनुलेख: और वैसे भी, इस लेख के लिखने के बाद यह खबर दिखाई गयी है:"ओबामा ने $१०००००००००००० (एक ट्रिलियन डॉलर) के सिक्के ढालने से इनकार कर दिया।" खैर, तो क्या हुआ? क्या किसी को अभी भी उसके बाद, विश्वास है, कि पैसा श्रम का एक पैमाना है? :-)) बहरहाल कुछ भोले भोले लोग मानते हैं कि पैसे के निर्माण की प्रक्रिया एक संस्कार की तरह है: यदि आपने सामग्री मूल्य बनाया है, मान लीजिये, तो आपने एक पेंच बना दिया है, इसका मतलब यह है कि डॉलर दुनिया में कहीं पैदा हुआ था। एक और मूर्ख दुनिया में कहीं पैदा हुआ था। :-)) हाँ! "डॉलर का जन्म हुआ था।" मुझे हँसाओ मत। उन्होंने धातु का एक टुकड़ा लिया और उस पर "$ १००००००००००००(१ ट्रिलियन डॉलर)" ढाल दिया। तो, इसका क्या मतलब है? वे खरबों पेंच पैदा हुए थे,क्या वे नहीं हुए थे? :-)) यही कारण है जिसके बारे में मैं बात कर रहा हूँ। यह असामान्य है, जब कुछ लोग बड़ी मेहनत से पैसा कमाते हैं, और वहीँ दूसरे लोग केवल उसकी ढलाई(छपाई) करते हैं। यह एक बुरी व अन्यायपूर्ण दुनिया है। वित्तीय कयामत। यही एक तरीका है। हमारे पास कोई अन्य विकल्प नहीं है।

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